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पढ़िए आरिफ शेख का लेख "हवाई चप्पल" Featured

 फ़ेस्बुक पर ईद के संदेश देखते देखते पता नहीं कहा से ये एक Air cushioned चप्पल का ऐड देखा , air cushioned जूते में तो सुना था , लेकिन चप्पल में


भई अगर चप्पल ही पहन्नी है तो इतने ताम झाम की क्या ज़रूरत ? हवाई चप्पल पहन लो ..चाहे वो पैरगान की हो , पायल की या फिर लिबर्टी की ..काफ़ी है ।

बचपन में २०-२५ रुपए में ये हवाई चप्पल आती थी । उस वक्त खेल कोई भी हो यही चप्पल हमारे ( आज की भाषा में कहे तो ) Trainers हुआ करते थे । चाहे क्रिकेट हो , या फ़ुट्बॉल , लग़ोरी या फिर सुबह के समय का कभी कभार होने वाला जॉगिंग , सभी का एक ही हल हमारी हवाई चप्पल । सफ़ेद बसे में नीले पट्टे वाली यह चप्पल कौन भूल सकता है, आख़िर माँ ने सुताई भी इसी से कई baar की है ।

 

अक्सर आपने ये सोचा होगा इसको हवाई चप्पल क्यों कहते है , मुझे भी ये प्रश्न था .. एक बार मेरे छोटे भई के साथ मेरा क्रिकेट खेलते हुए झगड़ा हुआ , वो बैटिंग एंड पे था और मैं बॉलिंग एंड पे , ग़ुस्से में मैंने अपनी चप्पल उतार के एकदम मोगली के बूमरैंग की तरह निशाना लगाके उसपे अपनी चप्पल फेंकीं, चप्पल हवा में तैरती हुई हवा से बातें करते हुए आगे बढ़ रही थी , मानो पूरा संसार रुक कर मेरे हवाई चप्पल की हवा में सैर देख रहा हो और उसके निशाने की पूर्ति की दुआ कर रहा हो, लेकिन आख़री समय में एक हवा का झोका आया और चप्पल अपनी duty कर लौट रहे एक constable uncle को लग गयी , बस ये होते ही हवाई चप्पल के साथ हम दोनो भाई हवा-हवाई हो गए

 हवाई चप्पल का maintenance भी एकदम zero

ज़्यादातर इसका सिर्फ़ एक प्रॉब्लम था इसका अंगूठा kabhi-कभार निकल जाता था , उसको fix करना भी एक कला थी। उसको फ़ीट करने थूँक का इस्तेमाल होता था, चप्पल के base में जो छेद होता है उसमें और चप्पल के सपोर्ट के अंगूठे का भाग उसमें थूँक लगा के , पूरा ज़ोर लगा के अंगूठा चप्पल में घुसेड़ना पड़ता था । बोहोत लोगों को ये नहीं आता था और मेरी उसमें महारत थी, इस चप्पल repairing करने से हफ़्ते में १-२ टॉफ़ी का जुगाड़ ज़रूर हो जाता था ।

 

ये चप्पलें all terrain wear 

नोकिले पहाड़ों में या आग के लपेटों में भी उसपे कोई असर नहीं होता था । जलती होलिका में कई बार ये चप्पल पहन के इधर से उधर गुजरने की कई शर्त खेली है । जंगल में खेलते समय बबूल या अन्य काटे भी इसमें ज़्यादा घुसने की हिमाक़त नहीं करते थे , लेकिन एक बार जब हम आम चुराने एक बगीचे में गए थे तो फ़ेन्सिंग का तार चप्पल में घुस गया था , मेरा पैर तो जैसे तैसे बच गया लेकिन चप्पल वही पे छोड़ कर भागना पड़ा…ना जाने ऐसे कितने चप्पलें क़ुर्बान हुई है।

आज कल की पीढ़ी को इन हवाई चप्पलो से कोई मतलब नहीं , CROCS के इस जमाने में हवाई चप्पल तो विलुप्त ही होती जा रही है , इसकी जगह Toilet तक सीमित रह गयी है …. और रह गयी है सिर्फ़ यादें


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